• उनका शोक, इनका सुख

    युवा पत्रकार और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के शीर्ष नेता सीताराम येचुरी के बेटे आशीष का बीते गुरुवार कोरोना के कारण निधन हो गया।

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    युवा पत्रकार और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के शीर्ष नेता सीताराम येचुरी के बेटे आशीष का बीते गुरुवार कोरोना के कारण निधन हो गया। गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में करीब दो सप्ताह से उनका इलाज चल रहा था, लेकिन उन्हें बचाया नहीं जा सका। पूर्व राज्यसभा सांसद पर इस महा  वज्रपात के बावजूद उन्होंने अत्यंत संतुलित शब्दों में बेटे के न रहने की सूचना देते हुए उन डॉक्टरों, नर्सों, स्वास्थ्य कर्मियों और सफाई कर्मचारियों को शुक्रिया कहा, जिन्होंने बेटे की देखभाल में अपना योगदान दिया। उन्होंने अपने एक दूसरे ट्वीट में लिखा-''मुझे पता है कि यह दुख केवल मैं ही नहीं झेल रहा हूं। इस महामारी ने बेहिसाब लोगों को मौत की नींद सुला दिया है।


    दूसरी तरफ बिहार भाजपा के उपाध्यक्ष और पूर्व सांसद मिथिलेश कुमार तिवारी ने एक आपत्तिजनक ट्वीट किया-  ''चीन का समर्थन करने वाले सीताराम येचुरी के बेटे का चाइनीज वायरस से निधन। मालूम हो कि मिथिलेश तिवारी खुद इस वक़्त कोरोना संक्रमित हैं। उन्होंने बाद में दूसरे ट्वीट में कहा कि उनका ट्विटर हैंडल हैक कर लिया गया था और हैकर ने आपत्तिजनक ट्वीट किया। उन्होंने आगे लिखा ''राजनीतिक दुर्भावना के चलते मेरा हैंडल हैक करके एक बेहद असंवेदनशील ट्वीट किया गया था।

    संज्ञान में आते ही ट्वीट हटा दिया गया है। मैं सीपीएम नेता को सांत्वना व संवेदना प्रेषित करता हूं। किसी की भी मृत्यु पर क्षुद्र राजनीति सदैव निंदनीय है।


    मिथिलेश तिवारी अब लाख सफाई दें, उनकी अपनी और पार्टी की छवि को जो नुकसान होना था, हो चुका। लेकिन इसकी उन्हें रत्ती भर भी परवाह न हो और अपने बिगड़े बोलों पर शर्म भी न आ रही हो तो कोई आश्चर्य नहीं। अपने आपको संस्कारी कहने वाले भाजपा के शीर्ष नेतृत्व से लेकर उसके अदने कार्यकर्ता तक आए दिन इसी तरह के बयान देते रहते हैं।

    हाल ही में उसके राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने राहुल गांधी द्वारा अपनी रैलियां निरस्त किए जाने और उनके कोरोना संक्रमित होने पर कहा कि बंगाल में उनका कोई कार्यक्रम नहीं था, रैली निरस्त कर वे वाहवाही बटोर रहे हैं। उन्होंने बंगाल की जनता से झूठ बोला, इसलिए वे कोरोना पॉजिटिव हो गए।


    पाठकों को याद होगा, 'स्मार्ट इंडिया हैकाथॉन 2019 के लिए इंजीनियरिंग छात्रों से बात करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने परोक्ष रूप से राहुल गांधी को डिस्लेक्सिया पीड़ित बताया था। इलाज के लिए सोनिया गांधी के विदेश जाने पर भी भाजपा नेताओं ने कटाक्ष किए। दिल्ली के एक सरकारी कार्यक्रम में भाजपा कार्यकर्ताओं ने अरविन्द केजरीवाल की खांसी की नकल कर उनके भाषण में रुकावट पैदा करने की कोशिश की थी। दो साल पहले एक महिला पत्रकार ने अमित शाह को स्वाइन फ्लू होने पर तंज किया था जो वास्तव में पत्रकारिता के मान्य सिद्धांतों के विरुद्ध था। जवाब में भाजपा समर्थित एक वेबसाइट ने उस पत्रकार को मानसिक रोगी ठहरा दिया।


    राजनीति में विरोध, असहमति, उपहास और आरोप-प्रत्यारोप, सब अपनी जगह है लेकिन विरोधियों से इस कदर घृणा हो कि उनकी बीमारी का, उनकी मृत्यु का मजाक बनाया जाए और उस पर ठहाके लगाए जाएं तो इससे ज़्यादा अशिष्ट बात क्या होगी। हाल ही में हमने इसी जगह लिखा था कि कोरोना का वायरस धर्म,जाति, नस्ल, लिंग और रंग देखकर आक्रमण नहीं कर रहा है और न ही पार्टी का झंडा देखकर। भाजपा के ही न जाने कितने नेता और कार्यकर्ता संक्रमित हो चुके हैं और न जाने कितने कोरोना का ग्रास बन चुके हैं। कैलाश जी और तिवारी जी बेहतर बता सकते हैं कि क्या उन्हें कोई स्वदेशी वायरस लगा था और क्या उन्होंने भी जनता से झूठ बोला था?


    इन दोनों नेताओं के बोल-वचन कुछ सवाल पैदा करते हैं कि क्या हमारे राजनेता और उनके समर्थक, किसी विपक्षी के रोग और शोक में परपीड़ा सुख पा रहे हैं? क्या सत्ता का अहंकार नेताओं पर इतना हावी है कि अपने विरोधियों के साथ परस्पर सम्मान और सामान्य शिष्टाचार का व्यवहार संभव नहीं रह गया है? राजनीति में जो थोड़े-बहुत मूल्य और सिद्धांत रह गए हैं, क्या उन्हें तिलांजलि देना जरूरी हो गया है? क्या लोकतान्त्रिक परम्पराएं इतिहास बनकर रह जाएंगी? रामायण और महाभारत धारावाहिकों में किसी को मारकर अट्टहास करते दानवों को हमने देखा है, क्या भारत की राजनीति में भी ऐसे दृश्य देखने के लिए जनता को तैयार हो जाना चाहिए?

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